Thursday, March 28, 2013

कुछ तो है, जो ये हो रहा है।

कुछ तो है, जो ये हो रहा है।
आकाश के परे, और एक अणु से भी छोटा।
ऊपर और नीचे, दोनों तरफ, अंतहीन।
कुछ तो है, जो ये हो रहा है।

पहाड़ों की सफ़ेद और हरी चादरों के पीछे,
नदियों नहरों में जो समय की तरह बेह रहा है,
कुछ तो है, जो हमारी समझ से बाहर है,
क्या है ये, जो हम समझ नही पा रहे है?
लेंस लेकर बैठे तो है, जो ढूंढ नहीं पा रहे हैं,
कुछ तो है, जो हमारे अंदर है,
हमारी जैसी कोई तस्वीर बना रहा है।

कुछ तो है जो एक और सिफर के बीच में रेहता है,
ढूंढो तो अंत-हीनता का नकाब ओढ़े है,
सभी सतेहों से परे, दूर कहीं,
कुछ तो है, जो पूरा होकर भी अधूरा है।
सबसे ऊपर से, सबसे नीचे तक,
अगर ऐसा कुछ है, तो क्या है वो?
कुछ तो है, जो ये हो रहा है।

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