Thursday, March 28, 2013

कुछ तो है, जो ये हो रहा है।

कुछ तो है, जो ये हो रहा है।
आकाश के परे, और एक अणु से भी छोटा।
ऊपर और नीचे, दोनों तरफ, अंतहीन।
कुछ तो है, जो ये हो रहा है।

पहाड़ों की सफ़ेद और हरी चादरों के पीछे,
नदियों नहरों में जो समय की तरह बेह रहा है,
कुछ तो है, जो हमारी समझ से बाहर है,
क्या है ये, जो हम समझ नही पा रहे है?
लेंस लेकर बैठे तो है, जो ढूंढ नहीं पा रहे हैं,
कुछ तो है, जो हमारे अंदर है,
हमारी जैसी कोई तस्वीर बना रहा है।

कुछ तो है जो एक और सिफर के बीच में रेहता है,
ढूंढो तो अंत-हीनता का नकाब ओढ़े है,
सभी सतेहों से परे, दूर कहीं,
कुछ तो है, जो पूरा होकर भी अधूरा है।
सबसे ऊपर से, सबसे नीचे तक,
अगर ऐसा कुछ है, तो क्या है वो?
कुछ तो है, जो ये हो रहा है।

Wednesday, March 20, 2013

सपने क्यों शरारत करते हैं ?

यह सपने क्यों शरारत किया करते हैं ?
आँखें मूंदने नहीं देते, चैन आने नहीं देते,
यूं ही पलकों के अंचल से लिपटे,
मुझको सताया करते हैं।
सपने मेरे ढीठ हैं बहुत,
शरारत से ये बाज़ नहीं आते।

Thursday, March 7, 2013

कुछ मुद्दत से यूं ही खामोश पड़े थे,
कई मुद्दे मुझे बरबस क्यों घूरे खड़े थे?
ज़रूरत वक़्त की नहीं थी के हमें सहारा देता,
उसकी कलाई हम भी तो मोड़े खड़े थे।
 
एक राह चलनी है,
कुछ सोच बदलनी है,
कहना है जो सुन्न है मुश्किल,
मुस्कान फिर भी थोड़ी,
चेहरे पे सजाये रखनी है।