कसम उठाता हूँ में |
फिर नहीं झुकूंगा, फिर नहीं दबूंगा,
फिर नहीं अपने क्रोध को बुझने दूंगा,
हाँ क्रोधित हूँ में |
क्योंकि क्रोध मेरा अधिकार है |
नहीं मानूंगा अब, जो मनवाना चाहोगे मुझको,
आँख भले दिखलाओगे मुझको,
फिर जो झुठलाना चाहोगे मुझको,
लाठी से भी तुम्हारी में नहीं डरूंगा,
हाँ क्रोधित हूँ में |
इस बार में तुमसे नहीं झुकूंगा |
लाचारी का ढोंग बहुत हुआ अब,
मजबूरी का नाटक बहुत किया बस,
स्वांग तुम्हारा टूट गया है,
भरोसा तुम पर से छूट गया है,
सच क्या है? आब तुमको बतलाना होगा,
वरना मुझसे टकराना होगा |
क्योंकि क्रोधित हूँ में,
और क्रोध मेरा अधिकार है |
तिरंगा उतना मेरा भी है,
जितना तुम ढोंगी दिखलाते हो,
बरबस तुम हम पर जतलाते हो,
और क्योंकि क्रोधित हूँ में,
आज कसम उठाता हूँ में,
तिरंगे को नहीं बिकने दूंगा |
इस बार में खुद को नहीं झुकने दूंगा |
इस बार में खुद को नहीं दबने दूंगा |